( तर्ज - इस तन धनकी कॉन ० )
भटक रही अब बुद्धिया हमारी ।
मनमें नहीं धीर ,
मिलजा मुरारी || टेक ||
दुख देत नित काम ,
होता हूँ बेफाम ।
पलभी न आराम ,
दिखती अंधारी ॥१ ॥
भजने न दे नाम ,
चलने न दे धाम ।
सत् - संगमें नींद
आवे विचारी ॥२ ॥
यह दीन वित जाय ,
करूँ अंतमें हाय ।
तब कौन ले नाथ !
मुझको उबारी ? || ३ ||
तुमसे न छिपि जाय ,
कहते न बनि जाय ।
अब दास तुकड्याकी
सुध ले मुरारी ! ॥४ ॥
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